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Showing posts from October, 2020

गणेश पंचरत्न स्तोत्र

  श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र! मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् । अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥ नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् । सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥ समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् । कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥ अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् । प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम् कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥ नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् । हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥ महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् । अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

उमा महेश्वर स्तोत्र

  उमामहेश्वर स्तोत्रम : नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां परस्पराश्लिष्ट वपुर्धराभ्याम । नगेन्द्रकन्यावृषकेतनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यां सरसोत्सवाभ्यां नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम । नारायणेनार्चितपादुकाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्याम ॥ नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम । विभूतिपाटिरविलेपनाभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम । जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्याम पञ्चाशरी पञ्जररञ्चिताभ्याम । प्रपञ्च सृष्टिस्थिति संहृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्याम अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम । अशेषलोकैकहितङ्कराभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम । कैलाशशैलस्थितदेवताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्याम अशेषलोकैकविशेषिताभ्याम । अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसंभृताभ्यां नमो नमः शङ्करपार्वतीभ्यां ॥ नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां रवीन्दुवैश्वानरलोचनाभ्याम । राका शशाङ्काभ ...

दुर्गा चालीसा

 नमो नमो दुर्गे सुख करनी नमो नमो अम्बे दुःख हरनी निरंकार है ज्योति तुम्हारी तिहूं लोक फैली उजियारी शशि ललाट मुख महाविशाला नेत्र लाल भृकुटि विकराला रूप मातु को अधिक सुहावे दरश करत जन अति सुख पावे नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो तुम संसार शक्ति लै कीना पालन हेतु अन्न धन दीना अन्नपूर्णा हुई जग पाला तुम ही आदि सुन्दरी बाला प्रलयकाल सब नाशन हारी तुम गौरी शिवशंकर प्यारी शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो रूप सरस्वती को तुम धारा दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा धरयो रूप नरसिंह को अम्बा परगट भई फाड़कर खम्बा रक्षा करि प्रह्लाद बचायो हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं श्री नारायण अंग समाहीं नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो क्षीरसिन्धु में करत विलासा दयासिन्धु दीजै मन आसा हिंगलाज में तुम्हीं भवानी महिमा अमित न जात बखानी मातंगी धूमावति माता भुवनेश्वरी बगला सुख दाता श्री भैरव तारा जग तारिणी छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो नमो केहरि वाहन सोह भवानी लांगुर वीर चलत अगवानी कर में खप्पर खड्ग विराजै जाको देख का...

हनुमान चालीसा

 श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुं लोक उजागर रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा महाबीर बिक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी कंचन बरन बिराज सुबेसा कानन कुण्डल कुंचित केसा हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कांधे मूँज जनेउ साजे शंकर सुवन केसरीनंदन तेज प्रताप महा जग वंदन बिद्यावान गुनी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा बिकट रूप धरि लंक जरावा भीम रूप धरि असुर संहारे रामचंद्र के काज संवारे लाय सजीवन लखन जियाये श्री रघुबीर हरषि उर लाये रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई सहस बदन तुम्हरो जस गावैं अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राज पद दीन्हा तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना लंकेश्वर भए सब जग जाना जुग सहस...