Skip to main content

दुर्गा देवी स्तुति

!! श्री दुर्गा देवी की स्तुति !!
शिवा शीतला माँ शारदा शैलबाला ,
लसे शूल हाथ गले मुंड माला !
महाज्योति ज्वाला विष्णु की माया ,
सदा आपदा माहिं कीजे सहाया !!
चढ़ी सिंह पे हाथ में खडग लीन्हे ,
ललाई लसे नैन में कोप कीन्हें !
हने दानवी सेन को बान मारी ,
सोई टारती भक्त की पीर भारी !!
कृपा द्रष्टि सों सृषटि को पालती हो ,
सबै विघ्न्बाधान को टालती हो !
तुम्ही योगमाया तुम्ही हो भवानी ,
तुम्ही विश्वमाता तुम्ही वेदवाणी !!
सती पार्वती धूम्रकेशी विरूपा ,
अपर्णा उमा माँ महाकालरूपा !
तुम्हें ध्यावहीं विष्णु शंकर विधाता ,
नववें तुम्हें शीश जगदीश माता !!
तुम्हीं विश्व में शक्ती के रूप व्यापी ,
तुम्हीं भक्त के चित्त में भक्ती थापी !
भजें जो तुम्हें होत हें वो प्रतापी ,
तरें ध्यान कीन्हें बड़े घोर पापी !!
चढी बैल की पीठ पे शूल हाथे ,
त्रिनैनी कला चन्द्र की चारू माथे !
फनी का मनी के हिये हार राजे ,
प्रभा सामुहे अप्सरा कोटी लाजें !! 
भजें यक्ष गन्धर्व और देव देवा ,
करें सिद्ध योगी सदा पाद सेवा !
तेरा आदी और अंत है अम्ब नाहीं ,
तुही एक है तीनहुं लोक माही !!
तुही योग निद्रा तू ही देवी आर्या ,
गिरा गौरी तू ही तू ही शम्भू भार्या !
तू ही चंडिका चंडरूपा अनूपा ,
करे राव को रंक और रंक भूपा !!
जबै आप के भक्त द्वार पुकारें ,
तबै यत्न कर तुर्तहा कष्ट टारे !
तू ही घोर पापी कृपा कर उबारे ,
अहो मात मै हूँ तिहारे सहारे !!
तू ही विश्व की ईश्वरी जगत जांची ,
तू ही चेतना बुद्धी और सिद्धी साँची !
तू ही है स्वधा और स्वाहा स्वरूपा ,
तू ही सम्पदा रूप है कामरूपा !!
तू ही सूर्य में तेज के रूप राजे ,
तू ही चन्द्र में चांदनी चारू भाजे !
तू ही ज्योति है जागती अग्नी माहीं ,
तिहारे बिना वस्तु है कोई नाही !!
तू ही मानवी दानवी देवनारी ,
तू ही वैष्णवी नारसिंही कुमारी !

तू ही शम्भूदूती शची देवकन्या ,
तू ही राज राजेश्वरी है अनन्या !!
तू ही ज्ञान अभिमान औ मनमानी ,
तू ही बुद्धी विद्या अविद्या बखानी !
तू ही धारण लोकलज्जा कृपाली ,
क्षमा शांती श्रद्धा सुधा कान्तीकाली !!
नमो उग्र तारा लिए खडग खप्पर ,
धरे पाँव को शम्भू के वक्ष ऊपर !
जगे तीसरे नैन में घोर ज्वाला ,
जटाजूट माथे गले मुंडमाला !!
नमो छिन्नमस्ता समस्तार्ती हरती ,
नमो अन्नपुर्णा कृपा पूर्ण करती !
नमो मात कात्यायनी दक्षकन्या ,
नमो जालपा भैरवी धन्य धन्या !!
नमो मात नारायणी उग्रकेशी ,
नमो भद्रकाली कराली महेशी !
नमो योगिनी खेचरी तेजवंती ,
नमो मात शाकम्भरी रक्तदंती !!
नमो देवी दुर्गा शताक्षी अघोरा ,
नमो भामरी मैं धरौ ध्यान तोरा !
नमो खडगिनी शूलिनी शान्तीधामा ,
नमो नंद्कन्या क्रपारूप रामा !!
नमो सच्चीदानंद ज्योती स्वरूपा ,
नमो नित्य निर्वाण रूपा अरूपा !
नमो दुष्टदमिनी नमो कष्ट हरनी ,
नमो अम्बिका भक्त भंडार भरनी !!
नमो कृष्णवर्णा अपर्णा सुकेशी ,
नमो लोकपाली कृपाली महेशी !
नमो ध्यान गम्या अगम्या म्रडानी ,
नमो मंगला पिंगला मंत्रवानी

Comments

Popular posts from this blog

गणेश पंचरत्न स्तोत्र

  श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र! मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् । अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥ नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् । सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥ समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् । कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥ अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् । प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम् कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥ नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् । हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥ महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् । अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

शिव स्तोत्र 2

स्कन्दः - हृष्टां देवीं तदा वीक्ष्य भृङ्गिः साम्बं महेश्वरम् ।  तुष्टाव देव्या देवेशं स भृङ्गी विनयात् सदा ॥ १॥ भृङ्गी -क्रूरं दुष्टं विनष्टमनसं भ्रष्टं शठं निष्ठुरं निर्लज्जं कृपणं कृतघ्नशुचिं बह्वाशनं हिंसकम् । आशापाशशतप्रबन्धमनसं दुष्कीर्तिभाजं जडं कारुण्याकर भोः पितः पशुपते दोषाकरं पाहि माम् ॥ २॥ क्षुद्रं दुर्भगमल्पसत्वमलसं भग्नव्रतं रागिणं भीरुं डाम्भिकपक्षमं व्यसनिनं पापात्मकं सूचकम् । आधिव्याधिनिपीडितं जडधियं सद्भिः सदा निन्दितं कारुण्याकर भोः पितः पशुपते दोषाकरं पाहि माम् ॥ ३॥ मूर्खं बालमतिं स्वधर्मरहितं धर्मार्थहीनं खलं कामान्धं क्षणिकं तदर्थनपरं दौःशील्यजन्मस्थलम् ।सर्वलुब्धमसत्यनिष्ठमधमं प्रज्ञायशोवर्जितं कारुण्याकर भोः पितः पशुपते दोषाकरं पाहि माम् ॥ ४॥ आकाङ्क्षाशयमार्यवृत्तिविमुखं क्षीणं गुरुद्वेषिणं धूर्तं दुर्गुणमत्यशुद्धहृदयं सर्वत्र सन्देहिनम्दी नं पापरतं समस्तविषयेष्वासक्तमन्यायिने कारुण्याकर भोः पितः पशुपते दोषाकरं पाहि माम् ॥ ५॥ स्वप्नेऽप्युत्तमगन्धपुष्पनिकरैरीशार्चनावर्जितं धयानध्येयविचारणाविरहितं तुच्छं सदोच्छृङ्खलम् ।दारिद्रयास्पदमात्मवैरिवशगं तापत्रयस्यास्पद...

श्री हरि स्तुति

                ।।श्री हरि स्तुति ।।  शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशहम्। विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।।  लक्ष्मीकातं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यं।  वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।  जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।  गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिधुंसुता प्रिय कंता।। पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई।  जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई।।  जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा। अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।। जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगतमोह मुनिबृंदा।  निसि बासर ध्यावहिं गुन गन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।। जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा। सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।। जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।  मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुर जूथा।। सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहि जाना।   जेहि दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ सो श्रीभगवाना।।   भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा...