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देव स्तुति

देव तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते है
पूजा मे बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते है
धूम धाम से साज बाज से वे मंदिर मे आते है
मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएं लाकर तुम्हें चढ़ाते है
मैं भी एक गरीब हूँ ऐसा कुछ भी साथ नहीं लाया
फिर भी साहस कर मंदिर मे पूजा करने को आया
धूप दीप नैवेद्य नहीं है झांकी का सामान नहीं
और गले मे पहनाने को सुंदर सा कोई हार नहीं
कैसे करूँ कीर्तन तेरा स्वर मे है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी मे चातुर्य नहीं
नहीं दान है नहीं दक्षिणा खाली हाथ चला आया
पूजा की विधि नहीं जानता फिर भी नाथ चला आया
पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारी को समझो
दान दक्षिणा और न्योछावर इसी भिखारी को समझो
मैं उन्मत्त प्रेम का प्यासा हृदय दिखाने आया हूँ
जो कुछ है बस यही पास है इसे चढ़ाने आया हूँ
चरणों में अर्पित है इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु आपकी ही है ठुकरा दो या प्यार करो /

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  श्री गणेश पंच रत्न स्तोत्र! मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् । अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥ नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् । सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥ समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् । कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥ अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् । प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम् कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥ नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् । हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥ महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् । अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

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